मेरा वह कभी न भूलने वाला अनुभव


पी. वी. सिंधु

तोक्यो ओलिंपिक 2020 भारत का अब तक का सबसे सफल ओलिंपिक था, जहां मैंने भी अपने देश के लिए पदक जीता था। देश में इसको लेकर चारों ओर हर्ष और उल्लास का माहौल था। तोक्यो ओलिंपिक में भाग लेने के लिए जाने से पहले हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमें अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए प्रेरित किया था। इसलिए तोक्यो ओलिंपिक के सफल अभियान से स्वदेश आने के पश्चात हम सब प्रधानमंत्री से मिलने की उम्मीद कर रहे थे। उम्मीद के अनुसार, कुछ ही दिनों में हम सभी को लोक कल्याण मार्ग पर आमंत्रित किया गया। प्रधानमंत्री के साथ हमारी बहुत ही रोचक बातचीत हुई, जहां हमने उनके साथ अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने हम सब के प्रयासों की सराहना की और हमें भविष्य में और बेहतर करने को प्रेरित किया। उन्होंने खेल के लिए अपनी सरकार के रोडमैप को हमारे साथ साझा किया और भारत को एक खेल महाशक्ति बनाने में हम सबका सहयोग मांगा। उन्होंने हमसे युवाओं और उभरते खिलाड़ियों की मदद करने, उन्हें अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा हेतु तैयार करने और उनके साथ अपने अनुभव एवं विशेषज्ञता साझा करने की भी अपील की।

प्रधानमंत्री के साथ इस बैठक में एक और आश्चर्य मेरी प्रतीक्षा कर रहा था। खेल में फिटनेस काफी मायने रखती है, इसलिए जब मैं प्रैक्टिस करती थी तो मेरे माता-पिता मुझे आइसक्रीम खाने से रोकते थे। यह बात प्रधानमंत्री जी को पता थी। जब मैं तोक्यो ओलिंपिक में भाग लेने के लिए रवाना हो रही थी, तब प्रधानमंत्री जी ने मुझसे और मेरे माता-पिता से बात की थी और मुझसे वादा किया था कि तोक्यो में मेरी सफलता के बाद वे मेरे साथ आइसक्रीम खाएंगे। इस बैठक में मेरे सुखद आश्चर्य की तब कोई सीमा नहीं रही, जब उन्होंने मुझे मेरी पसंदीदा आइसक्रीम खिलाई। इसी तरह उन्होंने नीरज चोपड़ा से भी वादा किया था कि स्वदेश लौटने पर वह उन्हें चूरमा खिलाएंगे क्योंकि चूरमा नीरज को काफी पसंद है। प्रधानमंत्री ने अपना यह वादा भी पूरा किया। इन बातों का जिक्र मैंने यह बताने के लिए किया कि प्रधानमंत्री अपने खिलाड़ियों का किस कदर सम्मान करते हैं।

उस क्षण को कौन भूल सकता है, जब तोक्यो ओलिंपिक में भारतीय हॉकी टीम उम्दा खेल के बावजूद पदक से चूक गई थी। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिला हॉकी टीम को फोन कर सभी खिलाड़ियों से बात की और उनका हौसला बढ़ाया। इसी तरह, जब हालिया बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में फाइनल में भारतीय महिला क्रिकेट टीम एक नजदीकी मुकाबले में गोल्ड मेडल से चूक गई, तब भी उन्होंने महिला क्रिकेट टीम को ढाढस बंधाया और उनकी उपलब्धि को भारत का गौरव बताया। इसी कॉमनवेल्थ गेम्स में जब फ्री-स्टाइल कुश्ती में पूजा गहलोत गोल्ड से चूक गईं और कांस्य पदक जीता, तब प्रधानमंत्री ने खुद उनका हौसला बढ़ाया। इन बातों की चर्चा पूरी दुनिया में होती है।

भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिताली राज ने जब क्रिकेट से संन्यास लिया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद उन्हें खत लिखा, उनके करियर को अद्भुत बताया और युवाओं को उनसे प्रेरणा लेने की सलाह दी। वह महत्वपूर्ण खेल प्रतियोगिता में भाग लेने वाले खिलाड़ियों से प्रतियोगिता से पहले भी मिलते हैं, उनकी हौसला-अफजाई करते हैं और हार-जीत से इतर प्रतियोगिता के समापन के बाद भी सभी खिलाड़ियों से मिलते हैं। वह पैरालिंपिक और डेफलिम्पिक्स खिलाड़ियों से भी बात करते हैं। प्रधानमंत्री का अपने खिलाड़ियों के लिए यह भाव वास्तव में अद‌्भुत है। जब भी मैंने कोई टूर्नामेंट या पदक जीता है, उन्होंने हमेशा मुझे फोन किया है या मुझसे मिले हैं। यह सब मुझे अच्छे खेल के लिए प्रेरित करता है और मुझे अपने देश के लिए कुछ कर गुजरने हेतु प्रोत्साहित करता है।

खेलों में उनकी भागीदारी, खिलाड़ियों की जरूरतों के बारे में उनकी समझ, खेल प्रतिभा को उभारने के लिए उनकी इनिशटिव, बुनियादी ढांचे के विकास में उनके प्रयास और खिलाड़ियों की जरूरतों पर उनके विशेष ध्यान – इन सभी ने वैश्विक आयोजनों में भारत के प्रदर्शन में बहुत बड़ा बदलाव किया है। भारतीय खेलों में उन्होंने जो बदलाव लाए हैं, वे अब विभिन्न अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में हमारे प्रदर्शन में दिखाई देने लगे हैं।

देश में प्रतिभा की कोई कमी न थी, न है। जरूरत बस उस प्रतिभा को पहचानने और उसमें निखार लाने की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के युवाओं की प्रतिभा को पहचाना, इसे परिष्कृत करने के लिए नीतियां बनाईं। इसका परिणाम यह हुआ कि अब ऐथलेटिक्स से लेकर हर क्षेत्र में हमारे खिलाड़ी परचम लहरा रहे हैं और दुनिया भारत का लोहा मानने लगी है। ओलिंपिक हो या कॉमनवेल्थ गेम्स या एशियाड या फिर अन्य स्पोर्ट्स प्रतियोगिताएं, पिछले 8 वर्षों में भारत का प्रदर्शन काफी उत्कृष्ट रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी की दूरदृष्टि उनकी अनूठी योजनाओं और कार्यक्रमों से झलकती है। ‘टारगेट ओलिंपिक पोडियम स्कीम’ (टॉप्स) के जरिए देश ने खिलाड़ियों को जरूरी सुविधाएं दीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अलग से खेल मंत्रालय का गठन किया ताकि खेल पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया जा सके। खेल रत्न पुरस्कार का नामकरण हॉकी के महान जादूगर मेजर ध्यानचंद के नाम पर किया गया ताकि युवाओं में खेल के प्रति एक नए जोश और ऊर्जा का संचार हो। उन्होंने फिट इंडिया मूवमेंट की शुरुआत की ताकि युवा स्वस्थ और निरोग रहें। खेल के लिए बजट आवंटन में भी भारी वृद्धि की गई है। खेलो इंडिया कार्यक्रम का भी बजट बढ़ाया गया है। खिलाड़ियों को मिलने वाले कुल प्रोत्साहन और पुरस्कार राशि को भी बढ़ाया गया है। इससे निस्संदेह भारत को खेल जगत में नए कीर्तिमान स्थापित करने में मदद मिलेगी।

जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब से ही उन्होंने खेल में भारत को सर्वश्रेष्ठ बनाने की ठान ली थी। गुजरात खेल के लिए पहले नहीं जाना जाता था, लेकिन मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने 2010 में अपनी तरह के पहले गुजरात खेल महाकुंभ की शुरुआत की थी। जब वह देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने भारत में गांव-गांव से खेल प्रतिभा को तराशने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर ‘खेलो इंडिया यूथ गेम्स’ की शुरुआत की। केवल तीन साल में खेलो इंडिया केंद्रों से हजारों खेल प्रतिभाओं को तलाशा और तराशा गया है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने लोकप्रिय कार्यक्रम ‘मन की बात’ में अक्सर खेल और खिलाड़ियों की चर्चा करते हैं। उन्होंने खिलाड़ियों को दूरगामी योजना और सतत दृढ़ निश्चय का मंत्र देते हुए एक ही संदेश दिया है कि न एक जीत कभी हमारा आखिरी पड़ाव हो सकती है, न एक हार। उन्होंने खिलाड़ियों के चयन में भी पारदर्शिता लाने का कार्य किया है जिसके कारण आज दूर-दराज से हमारे युवा खिलाड़ी वैश्विक स्पर्धाओं में भारत का मस्तक गर्व से ऊंचा कर रहे हैं।

(लेखिका प्रसिद्ध बैडमिंटन खिलाड़ी हैं)

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं

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