घर का काम करवाना हो तो बेटे को बेटी बना दिया, क्यों?

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हाल ही में एक रिश्तेदार का घर पर आना हुआ। उन्होंने अपने बेटे का नाम नमित रखा था जो मेरे नाम से मिलता जुलता है। बातों बातों में नमित की मम्मी ने कहा, मैं तो बेटे को कभी-कभी नमिता भी बुलाती हूं। जब-जब घर के काम करवाने होते हैं तो मैं उसे अपनी बेटी बना लेती हूं। वाक्य यहीं खत्म हुआ और वहां बैठे सब लोग हंसने लगे कि वाह, क्या ट्रिक है!

नमित की मम्मी यंग है और खुद काफी इंडिपेंडेंट होकर अपना बिजनेस कर रही हैं। वह प्रोग्रेसिव सोच वाली महिला हैं और उन्हें अहसास भी नहीं होगा कि जिस मासूमियत से उन्होंने सबके सामने ये बात कही, उसका अर्थ दरअसल क्या है। नमित से घर के काम करवाने हों तो नमिता बोलकर पहले जेंडर चेंज करो, फिर उससे घर के काम करवाने में उसकी मम्मी और बाकी घरवालों को बुरा नहीं लगेगा। क्यों, क्योंकि घर का काम सीखना तो लड़कियों के ही जिम्मे है और वैसे भी अच्छा थोड़ी लगता है कि लड़के घर का काम करें।

वैसे सोचा जाए तो नमित की मम्मी की गलती नहीं है, अपने यहां सबके डीएनए में पैट्रियार्की इस कदर रची बसी है कि ऐसी बातें कहते या करते वक्त हमें पता भी नहीं चलता कि हम पूरे समाज को आगे नहीं बल्कि पीछे धकेल रहे हैं। अब वह दौर नहीं कि जब लड़कों को स्कूल भेजा जाता था, नौकरी करने या खुद कमाकर खाने और परिवार को पालने की सारी जिम्मेदारी पुरुष की होती थी। अब पढ़ाने लिखाने, करियर बनाने, घर से बाहर के सभी काम करने के लिए लड़कियों को भी उसी तरह मौके दिए जाते हैं और लड़कियां ये साबित कर भी रही हैं कि इतने सालों तक उनके साथ किया गया भेदभाव उचित नहीं था। समाज को इसके लिए अपनी पीठ ठोंकनी चाहिए लेकिन ‘लड़कियों को सभी काम सीखने चाहिए’ के प्रोजेक्ट पर काम करते-करते समाज ये भूल गया कि जब लड़का और लड़की दोनों पढ़ेंगे, लिखेंगे, काम पर जाएंगे, पैसा कमाएंगे तो फिर जो घर के काम हैं उन्हें कौन करेगा? इस बारे में फैसला लेना समाज क्यों भूल गया कि अगर लड़की वे सभी काम कर रही है जो पहले सिर्फ लड़कों के माने जाते थे, तो फिर उसके हिस्से में घर के काम की जिम्मेदारी बांटने का ख्याल समाज को क्यों नहीं आया? क्यों नमित की मम्मी को लगता है कि घर के काम करवाने के लिए मुझे उसे फ्रॉक पहनानी पड़ेगी और उसका नाम नमिता रखना पड़ेगा?

घर के काम किसकी जिम्मेदारी

पिछले दिनों सोशल मीडिया में एक रील खूब दिखाई दे रही थी। उसमें मम्मी अपने दो चार साल के लड़के से घर की डस्टिंग या झाड़ू पोछा करवा रही है और कहती दिखाई देती है, To my daughter in law, you are welcome! यानी ओ मेरी होने वाली बहू, देख लो मेरा लड़का घर का काम कर रहा है। मैं कितने खुले विचारों वाली सास हूं, बेटे को घर का काम सिखा रही हूं, तुम लकी हो राज करोगी। चलिए माना कि आप बेटे को काम सिखा कर बहुत अच्छा कर रही हैं, लेकिन बहू को संबोधित करते हुए जब आप यह कहती हैं कि ऐसे घर में तुम्हारा स्वागत है तो आपको ये समझने की जरूरत है कि घर का काम करके आप बहू पर कोई अहसान नहीं कर रही हैं। आप अपने बेटे को जब घर के काम सिखाती हैं तो आप अपने बेटे की मदद कर रही हैं, ताकि उसका खुद का जीवन आसान बने। सोचिए, बड़ा होकर पढ़ने या नौकरी करने दूसरे शहर या दूसरे देश जाएगा तो ये लाइफ स्किल्स उसके कितने काम आएंगी। थोड़ी बहुत कुकिंग आती हो, कपड़े खुद धो लेने की आदत हो, साफ सफाई रखना आता हो तो ये चीजें आपके बेटे को बेहतर इंसान बनाएंगी, उसकी सेहत अच्छी रहेगी और उसके अंदर इंसानियत आएगी। अपने कपड़े अलमारी में रखना, गीला तौलिया बेड पर न डालकर सूखने के लिए रखना, किचन में हाथ बंटाना, साफ सफाई रखना, अपने कपड़े खुद धो लेना या कम से कम वॉशिंग मशीन का कौन सा बटन दबाना है, ये सीख लेना, पानी, चाय या दूध के कप ग्लास सिंक में रखना और जरूरत हो तो धो लेना, चाय, अंडे और मैगी के अलावा थोड़ी बहुत कामचलाऊ कुकिंग सीख लेना, ये सभी काम किसी जेंडर विशेष के नहीं हैं, ये बात समझने और लगातार समझाए जाने की सख्त जरूरत है। अगर आपके बेटे या दामाद ने आपकी मौजूदगी में किचन में जाकर चाय बना दी तो उसे अजूबा समझ कर दुनिया भर में उसे महान साबित करना छोड़ना होगा। आपकी या आपकी बहू की गैरमौजूदगी में वह गंदगी में बैठा न रहे, भूखा प्यासा न रह जाए कम से कम इसी चिंता में सही, अपने बेटे को बेटा बनकर ही काम सिखाइए।

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं



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