अचल संपत्ति की बात करें तो भारत और चीन आर्थिक चक्र के एकदम विपरीत छोरों पर हैं। इस विषय में विस्तार से जानकारी प्रदान कर रहे हैं आकाश प्रकाश
चीन का परिसंपत्ति बाजार सन 1990 के दशक के मध्य में निजी परिसंपत्ति बाजार तैयार किए जाने के बाद की सबसे बुरी गिरावट का सामना कर रहा है। वहां बिक्री महामारी के पहले के स्तर के 80 प्रतिशत पर स्थिर है और कीमतों के एकदम निचले स्तर पर पहुंच जाने के बाद भी सुधार के कोई संकेत नहीं नजर आ रहे हैं। इसकी शुरुआत 2021 के मध्य में हुई जब सरकार ने वित्तीय तंत्र को बचाने के लिए परिसंपत्ति डेवलपरों पर लगाम लगाने की कोशिश की। दरअसल ऐसी आशंका पैदा हो गई थी कि अगर परिसंपत्ति डेवलपरों की बेतहाशा उधारी को नियंत्रित नहीं किया गया तो व्यवस्थागत जोखिम उत्पन्न हो जाएगा।
ऋण तक सीमित पहुंच के कारण डेवलपर पहले ही कमजोर थे और कोविड के बाद हुई बंदी ने उनकी बैलेंसशीट और बिगाड़ दी। इस बीच खरीदार भी दूर रहे। इस वर्ष वहां बिक्री 1.5 अरब वर्ग मीटर गिरावट की ओर है जो 2015 के बाद का न्यूनतम स्तर है। अब समस्या खरीदारों के बीच आत्मविश्वास की कमी के रूप में सामने है। एवरग्रांडे ऐसी कंपनियों में सबसे बड़ी है और वह भीषण वित्तीय दबाव में है। विदेशी बाजारों में 150 अरब रेनमिनबी मूल्य के बॉन्ड डिफॉल्ट कर गए हैं जबकि 80 अरब रेनमिनबी के अतिरिक्त बॉन्ड की परिपक्वता अवधि बढ़ाई गई है। यह विदेशों में जारी कुल डेवलपर बॉन्ड के 15 फीसदी से अधिक है। जबकि देश के भीतर डेवलपरों ने 70 अरब रेनमिनबी मूल्य के बॉन्ड पर या तो डिफॉल्ट किया है या उनकी परिपक्वता बढ़ाई है।
व्यक्तिगत खरीदार भी डेवलपरों की परियोजना पूरी करने की क्षमता में भरोसा खो चुके हैं। चीन में कम होती आय वृद्धि और लॉकडाउन की अनिश्चितता ने भी खरीदारों का भरोसा डगमगाया है। चीन में अधिकांश अपार्टमेंट्स को डेवलपर पहले ही बेच चुके हैं। अब प्रशासन द्वारा उनके खिलाफ कदम उठाने से उन्होंने नकदी जुटाने के लिए पहले बिक्री पर और जोर देना शुरू कर दिया है।
बिक्री कम होने से 2021 में फंडिंग गायब हो गई। पहले बिक्री करने का मॉडल तब कारगर रहता है जब मांग बढ़ रही हो और डेवलपर हर साल अधिक अपार्टमेंट बेच पा रहे हों। परंतु बिक्री घटते ही इस मॉडल में मुश्किल शुरू हो जाती हैं। बड़ी तादाद में डेवलपर संकट में आ जाते हैं और खरीदार भी चिंतित हो जाते हैं कि उन्हें परिसंपत्ति मिलेगी या नहीं। जोखिम से बचाव की प्रवृत्ति आते ही वास्तविक खरीदार भी निर्माणाधीन परियोजनाओं में रुचि लेना बंद कर देते हैं। यानी अगर डेवलपर पहले संपत्ति नहीं बेच सका तो वह परियोजना पूरी नहीं कर पाएगा। ऐसे में जोखिम का एक दुष्चक्र शुरू हो जाता है।
डेवलपर की वित्तीय मुश्किलों ने उन्हें विवश किया है कि वे निर्माण गतिविधियों को निलंबित करें और नई परियोजनाओं को रोक दें। चल रहा विनिर्माण भी 40 फीसदी कम हुआ है और नई परियोजनाओं की शुरुआत 30 फीसदी घटकर 2010 के स्तर पर आ गई है। जमीन की बिक्री में 50 फीसदी की गिरावट है। जाहिर है यह क्षेत्र संकट में है।
इस मंदी के कारण बीते दशक में चीन की अर्थव्यवस्था का वाहक रहा यह क्षेत्र समायोजन करने को विवश है। चीन के सकल घरेलू उत्पाद में निर्माण और अचल संपत्ति क्षेत्र का सीधा योगदान करीब 14 प्रतिशत है और अप्रत्यक्ष योगदान को जोड़ लें तो कई अन्य अनुमान इसे 30 फीसदी बताते हैं। परिसंपत्ति क्षेत्र में गतिविधियां लगातार चार तिमाहियों से घट रही हैं। यह तीन दशक की सबसे बड़ी गिरावट है। परिसंपत्ति के कमजोर आंकड़ों के बावजूद अर्थव्यवस्था का विकास जारी है तो इसलिए कि निर्यात और अधोसंरचना व्यय मजबूत है। बहरहाल, चीन 2022 में 5.5 फीसदी का वृद्धि लक्ष्य प्राप्त करता नहीं दिखता।
कमजोर पूर्वानुमान ने स्थानीय अधिकरियों को परिसंपत्ति स्वामित्व प्रतिबंधों को शिथिल करने पर विवश किया है और मॉर्गेज दरें इस वर्ष 100 आधार अंक तक कम हुई हैं। बहरहाल, गिरावट को थामने के लिए ये उपाय खरीदारों के आत्मविश्वास जैसे बुनियादी मुद्दों पर ध्यान नहीं देते।
बहरहाल, इस गिरावट को रोकने के अलावा ये उपाय खरीदार के आत्मविश्वास के बुनियादी मामले का समाधान नहीं करते। सरकार को अपने प्रोत्साहन कार्यक्रम को इस प्रकार तैयार करना होगा कि परियोजनाएं समय पर पूरी हों और जिन अपार्टमेंट का भुगतान हो चुका है उनकी आपूर्ति हो जाए। सरकार ने इस दिशा में कुछ कदम उठाए हैं और सरकारी बैंकों से कहा है कि वे अटकी परियोजनाओं की मदद करें। बहरहाल, इस दिशा में ज्यादा कुछ नहीं हो सका है। चीन के नीति निर्माता इन परियोजनाओं की सीधी मदद करने को लेकर अनिच्छुक नजर आ रहे हैं।
अगर परिसंपत्ति बाजार की हालत सुधारने और खरीदारों का आत्मविश्वास बहाल करने के लिए कुछ ठोस उपाय नहीं किए गए तो चीन लंबे समय तक आर्थिक मंदी का शिकार रह सकता है। वैश्विक मंदी के चलते निर्यात और अधोसंरचना व्यय के दम पर चीन की अर्थव्यवस्था को जल्दी 5 फीसदी की वृद्धि दर पर वापस लाना मुश्किल है।
चीन के परिसंपत्ति बाजार की कमजोरी वैश्विक जिंसों पर यकीनन असर डालेगी। अब तक यह असर सीमित था क्योंकि अधोसंरचना व्यय परिसंपत्ति व्यय में कमी की भरपाई कर रहा था। बहरहाल, अगर विनिर्माण में गिरावट आती रही तो जिंस कीमतें भी प्रभावित होंगी। परिसंपत्ति मूल्यों में गिरावट का दूसरा असर चीन तथा अन्य विकसित देशों की मौद्रिक नीति में अंतर पर पड़ेगा। अमेरिका और यूरोपीय संघ मौद्रिक नीति को सख्त बना रहे हैं और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए वित्तीय हालात को सख्त कर रहे हैं। जबकि चीन दरों में कटौती कर रहा है ताकि अर्थव्यवस्था को स्थिर किया जा सके।
अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड प्रतिफल अब चीन के सरकारी बॉन्ड के प्रतिफल से अधिक है। यह अंतर आगे और बढ़ेगा। इसका असर चीन की मुद्रा पर पड़ेगा। रेनमिनबी कमजोर हुई है और उसकी कमजोरी अन्य उभरते देशों की मुद्राओं पर भी दबाव डालेगी। कोई भी देश नहीं चाहता कि वह चीन के सामने कमजोर पड़े।
चीन के परिसंपत्ति बाजार में घटी घटनाओं में भारत के लिए भी सबक हैं। इससे पता चलता है कि अचल संपत्ति और विनिर्माण उद्योग किस हद तक वृद्धि के वाहक हो सकते हैं। इसका असर वृद्धि पर भी होगा जैसा कि हम आईएलऐंडएफएस मामले में देख चुके हैं। भारत का अचल संपत्ति क्षेत्र अचानक नकदी संकट से जूझने लगा था और फंडिंग की बाधाओं के चलते गैर बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र की कंपनियों की बैलेंस शीट प्रभावित हुई थी। हमें लगातार डिफॉल्ट देखने को मिले थे और अचल संपत्ति से संबंधित फंसे हुए कर्ज में इजाफा हुआ था।
भारत में विनिर्माण और अचल संपत्ति का क्षेत्र फलफूल रहा है, ऋण बढ़ रहा है और परिसंपत्तियों से जुड़े सुधारों को अंजाम दिया जा चुका है। ऐसे में विनिर्माण वृद्धि का वाहक बनेगा। चीन की हालत इसके लगभग विपरीत है।
(लेखक अमांसा कैपिटल से संबद्ध हैं)