जलवायु परिवर्तन का कारोबार

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जलवायु परिवर्तन 21वीं सदी की प्रा​थमिक चुनौती बन गया है। अब जबकि कार्बन उत्सर्जन को ‘नेट जीरो’ करने की बात को लगभग सबने स्वीकार कर लिया है और भारी भरकम निवेश की मदद से ये व्यापक आ​र्थिक बदलाव पैदा करेंगे। इसकी वजह से लगभग हर बड़े उद्योग और गतिवि​धि (ऊर्जा से परिवहन तक और विनिर्माण से भारी उद्योग तक) पर असर होगा और सौर ऊर्जा पैनल तथा बैटरी से लेकर इलेक्ट्रॉनिक चिप निर्माण तथा विशेष धातुओं तक के कारोबार को गति मिलेगी।

नया हाइड्रोजन पाइपलाइन ग्रिड मौजूदा गैस और तेल ग्रिडों के पूरक का काम कर सकता है और हर जगह चार्जिंग स्टेशन देखने को​ मिल सकते हैं। ऐसे किसी बड़े उद्योग के बारे में सोचना भी मु​श्किल है जो इससे प्रभावित नहीं होगा।​ फिर चाहे हरित अमोनिया से उर्वरक बनाने की बात हो या बिना जीवाश्म ईंधन के इस्पात बनाने की। कुछ दशकों में आज की तुलना में अर्थव्यवस्था को पहचानना मु​श्किल होगा।

हर सप्ताह की सु​र्खियां हर सप्ताह बदलाव की जरूरत सामने लाती हैं। पाकिस्तान बाढ़ में डूब रहा है और इसी असाधारण बाढ़ के कारण उसकी अर्थव्यवस्था को 9 फीसदी का नुकसान हुआ है। कहा जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन के कारण नुकसान में 50 फीसदी का इजाफा हुआ है। मौसम को लेकर अनि​श्चितता बढ़ी है और इसकी वजह से बोआई के रुझान में तब्दीली आई है, जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ी हैं और ब्रिटेन जैसी जगहों में भारत जैसी गर्मी पड़ रही है। कई बार ऐसा लगता है मानो दुनिया ही खत्म होने को है क्योंकि हिमालय के ग्लेशियर पिघल रहे हैं, अंटार्कटिका के ग्ले​शियर टूट रहे हैं, समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है और तमाम जीव जंतु गर्म जगहों से ठंडी जगहों का रुख कर रहे हैं।

ऐसे में अगर बड़ी कंपनियों की निवेश योजनाओं पर नजर डाली जाए तो सबसे बड़ी योजनाएं जलवायु परिवर्तन से संबं​धित हैं। इसमें ई-कार और ई-स्कूटर से लेकर रेलवे को पूरी तरह बिजलीचालित करने तथा सौर और पवन ऊर्जा फार्म की मदद से हरित हाइड्रोजन का उत्पादन बढ़ाने पर जोर शामिल है। पारंपरिक कारोबारों के हरित होने के बारे में भी विचार कीजिए, तथा कम ऊर्जा के इस्तेमाल तथा कम कचरा उत्पादित करने तथा उसका अ​धिक से अ​धिक पुनर्चक्रण करने पर जोर दिया जा रहा है। सीमेंट से लेकर स्टील तक और उपभोक्ता पैकेजिंग और नौवहन (जहाजों में ऐसा पेंट करना जिससे वह पानी में आसानी से तैर सके) तक बदलाव ही बदलाव की बात है।

इंसानी गतिवि​धियों में कार्बन का इस्तेमाल कम करने से वही होगा जो डिजिटलीकरण और संचार तथा डेटा क्रांति के चलते पहले ही घटित हो चुका है। यानी रोज की यात्राओं का अंत, आभासी बैठकें, टेलीमेडिसन और यहां तक कि दूरवर्ती ​शिक्षा भी। इसके अतिरिक्त बैंकिंग में तो भौतिक से आभासी तक का बदलाव हम देख ही रहे हैं। कोविड ने भी इन बदलावों को गति देने में मदद की है।

ये जीवनचक्र में दीर्घकालिक बदलाव को जन्म दे सकते हैं। मिसाल के तौर पर अच्छे बुनियादी ढांचे की बदौलत बड़े शहरों से दूर नई और ज्यादा अनुकूल जगहों पर रहना। ज्यादा तेज गति से चलने वाली इंटरसिटी ट्रेनों की शुरुआत से भी मदद मिलेगी। ऐसे में क्यों न कम भीड़भाड़ वाले चंडीगढ़ और जयपुर जैसे शहरों में रहा जाए और जरूरत पड़ने पर चंद घंटों का सफर करके दिल्ली पहुंच जाया जाए। मेरठ जैसे शहरों से तो एक घंटे में ही दिल्ली पहुंचा जा सकता है।

संकट और अवसर के इस मेल ने सरकारों को भी कारोबारों के साथ ला दिया है जैसा कि एक संकट ही कर सकता है। हालांकि यूरोप और अन्य जगहों पर यूक्रेन संकट के कारण कार्बन पर निर्भरता बढ़ गई है। इसके बावजूद वि​भिन्न देशों ने उत्सर्जन लक्ष्य तय किए हैं और वांछित निवेश के लिए प्रोत्साहन और स​ब्सिडी की व्यवस्था की है। जानकारी के मुताबिक रिलायंस ने गुजरात सरकार से कच्छ में 1,800 वर्ग किलोमीटर जमीन मांगी है ताकि वह हरित ऊर्जा परियोजना लगा सके। यह भूभाग दिल्ली शहर से थोड़ा बड़ा है। ऐसा केवल अंबानी, अदाणी या टाटा तक सीमित नहीं है।

दिग्गज सरकारी कंपनियां मसलन इंडियन ऑयल और एनटीपीसी, लार्सन ऐंड टुब्रो तथा रीन्यू पॉवर आदि भी नए अवसरों की तलाश में हैं। ओला जैसी कैब सेवा देने वाली कंपनी ने ई-स्कूटर बाजार में प्रवेश किया है और घर-घर आपूर्ति की मदद से खुदरा कारोबार में बदलाव आ ही रहा है। यकीनन कारोबार प्रभावित भी होंगे। यात्रा और स्वागत क्षेत्र, ऑफिस के पहनावे का बाजार, सिनेमाहाल और वा​णि​ज्यिक अचल संप​त्ति क्षेत्र की कंपनियों का आकार जरूर घटेगा। इनकी जगह दूरदराज की जगहों में अचल संप​त्ति के अवसर बढ़ेंगे। चाहे जो भी हो भारत इस क्षेत्र में देर से आया है और उसके पास एक अनियोजित लाभ है: उसे नई चीजों के लिए रास्ता बनाने के लिए पुरानी चीजों को कम ध्वस्त करना होगा। 

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