टीबी मुक्त अभियान, गोद लिए दो लाख


शाइन जैकब और सोहिनी दास /  09 15, 2022






 

केंद्र की नि-क्षय 2.0 योजना के अंतर्गत बीते पांच दिनों में क्षय रोग यानी टीबी के 1.90 लाख मरीज गोद लिए जा चुके हैं। प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान के तहत इस योजना की शुरुआत 9 सितंबर को हुई थी। इसका उद्देश्य 2025 तक टीबी उन्मूलन कार्यक्रम में समुदाय को शामिल करना है। इसके अलावा यह भी सुनिश्चित करना है कि मरीज को टीबी के संक्रमण से उबरने के लिए पर्याप्त पौष्टिक भोजन मिले।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सेंट्रल टीबी डिवीजन के अतिरिक्त उपनिदेशक रघुराम राव ने कहा कि कुपोषित व्यक्ति और कम रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले व्यक्ति को टीबी की बीमारी होना बेहद नुकसानदायक होता है। इसलिए टीबी के इलाज के मामले में खाने को ‘वैक्सीन’ (दवाई) भी कहा जाता है। केंद्र सरकार टीबी के मरीजों को मुफ्त में दवाई मुहैया कराती है। ऐसे में यह सुनिश्चित करना जरूरी हो जाता है कि मरीज को उचित और पौष्टिक भोजन मिले।

यह पहली बार नहीं है कि सरकार ने आम लोगों के लिए लोगों से धन जुटाने (क्राउड फंडिंग) का प्रयास किया हो लेकिन नि-क्षय 2.0 अभियान की तरह अन्य अभियानों को ऐसी सफलता नहीं मिली। केंद्र सरकार ने अगस्त 2021 में इस असाधारण बीमारी के लिए लोगों से धन एकत्रित करने का कार्यक्रम धूमधाम से शुरू किया था। इसमें कॉरपोरेट और व्यक्ति विशेषों को इस विलक्षण बीमारी से ग्रसित मरीजों विशेषकर बच्चों के इलाज के लिए दान मांगा गया था। सेंटर्स ऑफ एक्सीलेंस घोषित आठ अस्पतालों को लोगों के दान में मिले धन को स्वीकार करने की अनुमति दी गई थी। हालांकि एक साल बाद यह योजना पूरी तरह से कारगर सिद्ध नहीं हो पाई थी।

अब तक इस विलक्षण बीमारी से ग्रसित 360 मरीजों का पोर्टल पर पंजीकरण हुआ लेकिन अभी तक दान में केवल 1,79,097 रुपये ही प्राप्त हुए हैं। अहमदाबाद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर व भारत में क्राउड-फंडिंग प्लेटफार्मों की विशेषज्ञ हेतल जवेरी ने कहा, ‘निजी क्षेत्र की कंपनियों की तुलना में सरकार के कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने वाले कम होते हैं, ऐसे में मार्केटिंग भी कम होती है और उनकी सोशल मीडिया तक भी बहुत पहुंच नहीं हो पाती है। देश भर में ऑनलाइन के विभिन्न प्लेटफार्मों के जरिये एकत्रित की गई कुल राशि तकरीबन 10,000 करोड़ रुपये है।’

इस असाधारण बीमारी के लिए निजी क्षेत्र ने भी अभियान चलाया है। क्राउड फंडिंग प्लेटफार्म इंपैक्टगुरु ने जनवरी 2021 से फरवरी 2022 के केवल 14 महीनों में इस असाधारण बीमारी के लिए 1,200 अभियान चलाकर 125 करोड़ रुपये जुटाए। इसमें 12 लाख लोगों ने दान दिया।

इंपैक्टगुरु डॉट कॉम के सहसंस्थापक व मुख्य कार्या​धिकारी अधिकारी पीयूष जैन ने कहा, ‘हर साल लोगों से जुटाए धन से करीब 50,000 से 60,000 लोगों को फायदा मिलता है। हमारा अनुमान है कि आने वाले दशक में इस तरह धन जुटाने से 10 लाख से अधिक लोगों को फायदा मिलेगा। स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र के लिए धन जुटाने के लिए 18 अरब डॉलर से अधिक की राशि की कमी रहती है। विशेषज्ञों के मुताबिक अगले दशक तक 4 अरब रुपये मार्केट से इस तरह जुटा लिए जाएंगे।

हाल में ऐसे कई उदाहरण मिले हैं जब सरकार के कोष जुटाने की पहल कारगर सिद्ध नहीं हुईं। केरल सरकार ने 3.45 लाख छात्रों को मुफ्त में लैपटॉप मुहैया कराने के लिए 700 करोड़ रुपये जुटाने का प्रयास किया लेकिन इस मई तक सरकार केवल 2.99 करोड़ रुपये ही जुटा पाई थी। केरल सरकार आधारभूत संरचना के विकास लिए अप्रवासी केरलवासियों से निवेश करने की मदद मांग रही है। इसी तरह तमिलनाडु के 17,884 विद्यालयों की आधारभूत संरचना के विकास के लिए आम लोगों से धन जुटाया गया। यह कार्यक्रम सरकार बदलने के कारण प्रभावित हुआ। इस अभियान को पूर्ववर्ती एआईएडीएमके सरकार ने 2019 में शुरू किया था।

विशेषज्ञों के मुताबिक लोगों की स्वास्थ्य सेवाओं की देखभाल के लिए लोगों से धन जुटाना बेहतरीन मॉडल नहीं है। केरल में मंजेरी के सरकारी मेडिकल कॉलेज में कम्युनिटी मेडिसन के एसोसिएट प्रोफेसर अनीश टीएस ने कहा कि समुदाय के स्वास्थ्य सेवा की देखभाल के लिए सबसे अच्छा तरीका करदाताओं के धन का समुचित और कार्यक्रम के अनुरूप खर्च करना है। उन्होंने कहा, ‘जब कोई विकल्प नहीं बचा हो तो लोगों से धन एकत्रित करने की पहल की जानी चाहिए।’ उन्होंने कहा कि कॉरपोरेट के सीएसआर कोषों को लोगों की भलाई में खर्च किए जाने के लिए प्लेटफार्म की मदद ली जानी चाहिए और इसके लिए सरकार को पहल करनी चाहिए।

लोगों से धन जुटाने की पहल ने निजी क्षेत्र में जोर पकड़ लिया है। क्राउड फंडिंग प्लेटफार्म मिलाप.ओआरजी के अनुमान के अनुसार इस क्षेत्र में शीर्ष पांच प्लेटफार्मों केटो, मिलाप, इंपैक्टगुरु और लिवइंडिया ने बीते 10 सालों में 8,000 करोड़ रुपये के करीब धन एकत्रित किया है।

मिलाप के सहसंस्थापक व अध्यक्ष अनोज विश्वनाथन ने कहा, ‘हमारा अनुमान है कि अगले तीन साल यानी 2025 तक यह उद्योग 25-30 फीसदी की दर से बढ़ेगा। लोगों की सहभागिता उन क्षेत्रों में होगी जहां बेहतर तालमेल होगा, जैसे सहमति के बाद यूनिक हेल्थ आईडी को साझा किया जाए और ऐसे अभियानों के लिए लोगों का सहयोग लिया जाए। सरकार निजी क्षेत्रों की आक्रामक मार्केटिंग रणनीति की मदद ले सकती है।’

अनीस टीएस ने स्वास्थ्य देखभाल के लिए लोगों से धन जुटाने की प्राइवेट सेक्टर की खामियों को भी उजागर किया। उन्होंने कहा, ‘भारत में रोजाना सैकड़ों बच्चों की मौत होती है लेकिन ऐसे मामले हमारे सामने पेश नहीं किए जाते। चलिए मान लेते हैं कि एक विशिष्ट बीमारी से ग्रसित बच्चे/मरीज के इलाज के लिए लोगों से धन जुटाने की मुहिम के तहत एक करोड़ रुपये एकत्रित कर लिए जाते हैं। ऐसे में इलाज की सफलता की दर 10 फीसदी ही होगी। आमतौर पर ऐसे मामले में लोग मानवीय आधार पर दान देते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘कल्पना कीजिए, कुपोषण से मरने वाले कितने बच्चे इस तरह से एकत्रित धन के जरिये उचित पौष्टिक भोजन प्राप्त कर पाएंगे।’

पब्लिक पॉलिसी नीति के विशेषज्ञों का मानना है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में समुदाय की भलाई के लिए लोगों से धन एकत्रित किया जाना चाहिए, न कि किसी खास मामलों के लिए। सरकार टीबी निराकरण अभियान में इसे लागू करने का प्रयास कर रही है। देश में टीबी के 13 लाख सक्रिय मरीज हैं। इनमें से तकरीबन 8.9 लाख मरीजों ने अपने को गोद लिए जाने की स्वीकृति दे दी है। जैसे फिक्की जैसे उद्योग संगठनों ने एक लाख टीबी मरीजों को गोद ले लिया है औऱ खाने के डिब्बे के लिए हर महीने 1,000 करोड़ रुपये देगी। यह डिब्बे हर मरीज को छह महीने (इलाज के दौरान) दिए जाएंगे।

स्वास्थ्य क्षेत्र के शोधकर्ता अनंत भान ने कहा कि समुदाय की मदद लेना शानदार सोच है लेकिन हरेक को मरीज की गरिमा का सम्मान करना चाहिए। उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा, ‘दान या गोद लेने के ज्यादातर मामलों में कॉरपोरेट या राजनीति के दिग्गज अपनी फोटो खिंचवाएंगे।’ यदि नि-क्षय योजना अत्य​धिक सफल हो जाती है तो यह भारत में जनमानस से धन जुटाने की पहल की रूपरेखा खींच सकता है।



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