पब्लिक प्लेस पर मोबाइल चार्ज करना मना है, फोन में घुसकर चोरी कर लेंगे वो जालसाज


नई दिल्ली : क्या आप भी कभी अपना फोन पब्लिक चार्जिंग स्टेशन पर चार्ज करते हैं। यदि करते हैं तो आपको सजग हो जाने की जरूरत है। ओडिशा पुलिस ने एक ट्वीट कर लोगों से पब्लिक चार्जिंग स्टेशनों पर अपना फोन चार्ज नहीं करने की हिदायत दी है। पुलिस का कहना है कि अपने मोबाइल को मोबाइल चार्जिंग स्टेशन, यूएसबी पावर स्टेशन आदि जैसे सार्वजनिक स्थानों पर चार्ज न करें। साइबर जालसाज मोबाइल से आपकी व्यक्तिगत जानकारी चुराने और आपके फोन के अंदर मैलवेयर इंस्टॉल करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में कभी आप अपना चार्जर घर भूल जाएं तो पब्लिक चार्जिंग स्टेशन पर अपना फोन चार्ज करने से बचना चाहिए।

जूस जैकिंग के जरिये डेटा चोरी संभव
साइबर एक्सपर्ट्स की राय है कि ‘जूस जैकिंग’ के जरिए मोबाइल सेट से डेटा की चोरी संभव है। एक्सपर्ट्स के अनुसार धोखाधड़ी करने वाले इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स तक पहुंचने के लिए पब्लिक यूएसबी चार्जिंग स्टेशनों पर मैलवेयर लोड कर सकते हैं। पुलिस का कहना है कि हालांकि यह पाया गया है कि कुछ लोग अपने स्वयं के चार्जर या पावर बैंक ले जाते हैं। जबकि कई लोग सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों जैसे बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, मॉल और अन्य स्थान पर अपना फोन चार्ज करते हैं।


2020 के मुकाबले 5% बढ़ा साइबर क्राइम
देश में 2021 में साइबर अपराध के 52,974 मामले दर्ज किए गए। यह 2020 (50,035 मामले) से करीब 5 प्रतिशत अधिक और 2019 (44,735 मामले) से करीब 15 प्रतिशत अधिक हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ‘भारत में अपराध- 2021’ रिपोर्ट के अनुसार साइबर अपराध के 70 प्रतिशत से अधिक मामले तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और असम से सामने आये। गृह मंत्रालय के तहत काम करने वाले एनसीआरबी ने कहा कि 2021 में देश में साइबर अपराध की घटनाओं (प्रति एक लाख आबादी पर) की औसत दर 3.9 दर्ज की गई।

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2017 से 2020 में चार गुना बढ़ोतरी
पिछले चार साल में देश में साइबर क्राइम चार गुना बढ़ गया है। NCRB के आंकड़ों के अनुसार साइबर क्राइम में 306% प्रतिशत बढ़े हैं। 2016 में साइबर अपराध के 12,317 मामले दर्ज किए गए थे। 2020 में यह संख्या बढ़कर 50,035 हो गई। इसका मतलब है कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, भारत ने 2020 में हर दिन 136 साइबर अपराध के मामले दर्ज किए। भारत की साइबर अपराध दर, या प्रति एक लाख जनसंख्या पर साइबर अपराधों की संख्या में भी चार वर्षों में 270 प्रतिशत की वृद्धि हुई। साल 2016 में यह 1 थी और 2020 में यह बढ़कर 3.7 हो गई।

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यूपी में सबसे अधिक साइबर क्राइम के केस
साल 2020 की रिपोर्ट के अनुसार राज्यों में, उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 11,097 साइबर अपराध के मामले दर्ज किए गए। इसके बाद कर्नाटक (10,741), महाराष्ट्र (5,496), तेलंगाना (5,024) और असम (3,530) का स्थान रहा। हालांकि, कर्नाटक में अपराध दर 16.2 के साथ सबसे अधिक थी। इसके बाद तेलंगाना (13.4%), असम (10.1%), उत्तर प्रदेश (4.8%) और महाराष्ट्र (4.4%) का नंबर था। ओडिशा के भुवनेश्वर में साल 2020 में 108 की तुलना में 2021 में लगभग 146 साइबर क्राइम की रिपोर्ट दर्ज हुई।

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साइबर क्राइम क्या है?
साइबर क्राइम एक व्यापक शब्द है जिसका उपयोग आपराधिक गतिविधि को परिभाषित करने के लिए किया जाता है। इसमें कंप्यूटर या कंप्यूटर नेटवर्क एक डिवाइस, टारगेट या आपराधिक गतिविधि का स्थान होता है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक क्रैकिंग से लेकर सर्विस अटैक तक सब कुछ शामिल होता है। यह एक सामान्य शब्द है जिसमें फिशिंग, क्रेडिट कार्ड धोखाधड़ी, बैंक रॉबरी, अवैध डाउनलोडिंग, औद्योगिक जासूसी, चाइल्ड पोर्नोग्राफी, चैट रूम के माध्यम से बच्चों का अपहरण, घोटाले, साइबर आतंकवाद, वायरस तैयार करना और डिस्ट्रीब्यूशन, स्पैम आदि जैसे अपराध शामिल हैं।

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साइबर क्राइम की शुरुआत
देश में साइबर क्राइम की शुरुआत 1970 के शुरुआती दशक की में हुई। उस समय अपराधी नियमित रूप से टेलीफोन लाइनों के माध्यम से अपराध करते थे। अपराधियों को फ़्रीकर्स कहा जाता था। दरअसल, 1980 के दशक तक कोई वास्तविक साइबर अपराध नहीं था। व्यक्तिगत डेटा और जानकारी को खोजने, कॉपी करने या हेरफेर करने के लिए एक व्यक्ति के पास दूसरे व्यक्ति का कंप्यूटर था। एनसीआरबी की वेबसाइट के अनुसार साइबर अपराध का दोषी पाया जाने वाला पहला व्यक्ति लैन मर्फी था। उसे कैप्टन जैप के नाम से भी जाना जाता है। उसने 1981 में साइबर क्राइम किया था। उसने अपनी इंटरनल क्लॉक में हेरफेर करने के लिए अमेरिकी टेलीफोन कंपनी को हैक किया था। वह चाहता था कि यूजर व्यस्त समय में भी मुफ्त कॉल कर सके।



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