भारत के ‘हिंदू राष्ट्र’ की भविष्यवाणी करने वाले स्वामी निश्चलानंद सरस्वती कौन हैं?

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नई दिल्ली : क्या भारत जल्द ही हिंदू राष्ट्र बन जाएगा? गोवर्धनमठ पुरीपीठ के शंकराचार्य ने इसको लेकर भविष्यवाणी की है। पुरी पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने दावा किया है कि भारत जल्द ही हिंदू राष्ट्र बन जाएगा। निश्चलानंद सरस्वती ने कहा है कि जिस दिन भारत हिंदू राष्ट्र घोषित होगा उसके साल भर के अंदर दुनिया के 15 अन्य देश भी हिंदू राष्ट्र बन जाएंगे। हालांकि, ऐसा नहीं है कि स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने पहली बार कोई इस तरह का बयान दिया हो। उन्होंने इस साल की शुरुआत में भी देश के 2025 तक हिंदू राष्ट्र होने की भविष्यवाणी की थी। आखिर जानते हैं कि कौन हैं गोवर्धनमठ पुरीपीठ के शंकराचार्य जिन्होंने इतनी बड़ी भविष्यवाणी की है।

बिहार के मधुबनी में हुआ था जन्म
जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती महाराज का जन्म 20 जून 1943 को पूर्वी बिहार प्रान्त के मिथिलांचल में दरभंगा (वर्तमान में मधुबनी) जिले के हरिपुर बख्शीटोलमानक गांव में हुआ था। इनके पिता लालवंशी झा क्षेत्रीय कुलभूषण दरभंगा नरेश के राज पंडित थे। इनकी माताजी का नाम गीता देवी था। स्वामी निश्चलानन्द के बचपन का नाम नीलाम्बर था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा बिहार और दिल्ली में पूरी हुई। दसवीं तक इन्होंने बिहार में विज्ञान की। इसके बाद दो वर्षों तक तिब्बिया कॉलेज दिल्ली से पढ़ाई की। स्वामी निश्चलानन्द बिहार और दिल्ली में छात्रसंघ विद्यार्थी परिषद के उपाध्यक्ष और महामंत्री भी रहे।

हिंदू सिर्फ धर्म नहीं बल्कि जीवन शैली है, जो मानवता का पाठ पढ़ाती है। सहिष्णुता -अहिंसा व समर्पण सिखाती है। साल 2025 के अंत तक सभी भारतवासी सकारात्मक सोच रखने लगेंगे। लोग धर्म से नहीं बल्कि विचारों और स्वभाव से हिंदू हो जाएंगे और भारत हिंदू राष्ट्र बन जाएगा।

– स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज

तिब्बिया कॉलेज में पढ़ाई के दौरान संन्यास की भावना
बडे़ भाई पं श्रीदेव झा के कहने पर इन्होंने दिल्ली में सर्व वेद शाखा सम्मेलन के अवसर पर धर्म सम्राट स्वामी करपात्री महाराज और श्री ज्योतिर्मठ बदरिकाश्रम के पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी कृष्णबोधाश्रम जी महाराज का दर्शन प्राप्त किया। उन्होंने करपात्री महाराज को दिल से अपना गुरूदेव मान लिया। तिब्बिया कालेज में पढ़ाई के दौरान ही इनके मन में संन्यास की भावना अत्यंत तीव्र होने लगी। तब वे बिना किसी को बताये काशी के लिए पैदल ही चल पड़े। इसके बाद इन्होंने काशी, वृन्दावन, नैमिषारण्य, बदरिकाआश्रम, ऋषिकेश, हरिद्वार, पुरी, श्रृंगेरी आदि प्रमुख धर्म स्थानों में रहकर वेद-वेदांग आदि का गहन अध्ययन किया। इन्होंने 7 नवम्बर 1966 को दिल्ली में देश के अनेक वरिष्ठ संत-महात्माओं एवं गौभक्तों के साथ गौरक्षा आन्दोलन में भाग लिया।
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श्रद्धालु मानते हैं शिव का अवतार
लोगों और श्रद्धालुओं में धारणा है कि गोवर्धन मठ पीठाधीश्वर शंकराचार्य साक्षात भगवान शिव के अवतार हैं। शंकराचार्य लोगों को सनातन धर्म और सनातनी परंपरा से साक्षात्कार कराते हैं। शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती देश के अलग-अलग हिस्सों में होने वाली धर्म संसद में हिस्सा लेते हैं। वह धर्म, राजनीति, आध्यात्म और गृहस्थ जीवन के साथ ही संन्यास जैसे विषयों पर लोगों के सवालों के जवाब देते हैं। इसके साथ ही इन विषयों से जुड़ी लोगों की जिज्ञासाओं को भी शांत करते हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग इनसे दीक्षा लेते हैं।

सनातनी परंपरा का पालन, प्रचार-प्रसार जरूरी
स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज का कहना है कि हमें सनातनी परंपरा का पालन कर लोगों के बीच इसका प्रचार प्रसार करना होगा। भारत में निवास करने वाले सभी नागरिकों के पूर्वज हिंदू हैं। वह सनातन धर्म से पोषित हैं। उन्हें अपने अतीत का स्मरण कराकर वापस लाना होगा। निश्चलानंद सरस्वती के अनुसार हिंदी में ही संस्कृत का समावेश है। वेद और पुराण का हिंदी वर्जन सनातन धर्म को सही तरीके से परिभाषित करता है। इसलिए हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार भी जरुरी है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में राजनीतिक परिस्थिति भी भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की हिमायती है।

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आधुनिक शिक्षा में बदलाव की वकालत
स्वामी निश्चलानंद सरस्वती आधुनिक शिक्षा में बदलाव की वकालत कहते हैं। इनका मानना है कि आधुनिक शिक्षा बच्चों में संस्कार पैदा नहीं कर पा रही है। उनके अनुसार दूषित शिक्षा नीति के कारण छात्र-छात्राओं में अच्छे विचार पैदा नहीं हो पा रहे हैं। वह इसमें बदलाव की जरूरत पर जोर देते हैं। उनका कहना है कि आज की व्यवस्था में जो कुछ है, उसमें से अच्छाई को अपनाना चाहिए। सही सनातन धर्म का यहीं सिद्धांत है।

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इतिहास में नहीं ताजमहल का उल्लेख, यह तेजोमालय
स्वामी निश्चलानंद सरस्वती का कहना है कि वर्तमान में जिसे ताजमहल कहा जा रहा है सही मायने में उसे तेजोमालय के नाम से जाना जाता था। ताजमहल नाम सही नहीं है। तेजोमालय का अर्थ (शिवालय) होता है, जिसे बर्बरता पूर्वक गिराकर किसी कालखंड में इसको ताजमहल बना दिया। सनातन इतिहास में ताजमहल का उल्लेख नहीं है बल्कि तेजोमालय के नाम से ही यह उल्लेखित है इसलिए इसे तेजोमालय के नाम से ही जानना चाहिए।

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