हिंदी डबिंग से बढ़ी दक्षिण भारतीय फिल्मों की लोकप्रियता

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देश भर की बॉक्स ऑफिस कमाई में 62 प्रतिशत हिस्सा दक्षिण भारतीय फिल्मों का है
​शिखा शालिनी / नई दिल्ली 09 13, 2022






कई मशहूर फिल्म निर्माण कंपनियों, बड़े फिल्मी सितारों और मार्केटिंग कौशल के बावजूद हिंदी फिल्म उद्योग को दक्षिण भारतीय फिल्में कड़ी टक्कर दे रही हैं। सीआईआई की दक्षिण मीडिया एवं मनोरंजन से जुड़ी एक रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में पूरे देश भर की बॉक्स ऑफिस कमाई में 62 प्रतिशत हिस्सा दक्षिण भारतीय फिल्मों का है। अब यह रुझान और भी तेज होता जा रहा है।

एक अनुमान के मुताबिक कन्नड़ ऐक्शन फिल्म ‘केजीएफ चैप्टर 2’ के हिंदी डब संस्करण ने 435 करोड़ रुपये की कमाई की, जबकि ‘आरआरआर’ और ‘पुष्पा: द राइज भाग-1’ के डब संस्करणों ने क्रमशः 265 करोड़ रुपये और 106 करोड़ रुपये की कमाई की। कोविड के बाद सिनेमाघर खुलने पर फिल्मों की कुल कमाई में डब फिल्मों के कलेक्शन की हिस्सेदारी 70 फीसदी हो गई। हिंदी डबिंग की सफलता की एक मिसाल फिल्म ‘आरआरआर’ है जिस ने देश भर में कुल 906 करोड़ रुपये की कमाई की जिसमें हिंदी डबिंग का योगदान 265 करोड़ रुपये है।

दक्षिण भारतीय फिल्मों की लोकप्रियता की एक प्रमुख वजह यह भी है कि बॉलीवुड पिछले कुछ वर्षों से मल्टीप्लेक्स दर्शकों को लुभाने की कोशिश में है लेकिन भारत में सिनेमा देखने वाला एक बड़ा वर्ग सिंगल-स्क्रीन दर्शकों का है जो जेब पर ज्यादा बोझ नहीं डालना चाहते हैं। ऐसे में इस वर्ग के लोगों की भीड़ इन दक्षिण भारतीय ऐक्शन फिल्मों को देखने के लिए देश भर के सिनेमाघरों में उमड़ती दिख रही है।

हाल ही में मशहूर निर्देशक एसएस राजामौलि की हिंदी-डब तेलुगू ब्लॉकबस्टर, ‘आरआरआर’, ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के झंडे गाड़ दिए और इसकी वजह से भारतीय फिल्म निर्माता भी सफलता पाने के लिए इन्हीं फॉर्मूले को अपनाने की कोशिश में हैं।

डॉ सौम्य कांति घोष के नेतृत्व वाली एसबीआई रिसर्च टीम की एक रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 2021 से  लेकर 11 अगस्त, 2022 तक कुल 61 हिंदी फिल्में (हिंदी में डब की गई दक्षिण भारतीय फिल्में / अंग्रेजी  फिल्मों सहित) रिलीज हुईं। इन फिल्मों ने कुल लगभग 3,200 करोड़ रुपये की कमाई की जिसमें से करीब 48 फीसदी कमाई 18 डब फिल्मों से हुई।

एसबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक खराब सामग्री, सिंगल स्क्रीन थिएटरों में कमी, हिंदी फिल्मों पर मनोरंजन कर और डिजिटल स्ट्रीमिंग मंचों के उभार के कारण दक्षिण भारतीय फिल्मों के लिए संभावनाएं तैयार हुईं हैं। इसी रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 2021 से रिलीज हुई 43 बॉलीवुड फिल्मों के लिए औसत आईएमडीबी रेटिंग सिर्फ 5.9 थी, जो 18 हिंदी डब फिल्मों की 7.3 की रेटिंग से काफी कम थी।

दक्षिण भारतीय फिल्मों के कारोबार विशेषज्ञ रमेश बाला कहते हैं कि दक्षिण भारत की फिल्में महानगरों के बजाय हिंदी भाषी क्षेत्रों जैसे कि उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब में खूब चलती हैं क्योंकि ये फिल्में केवल मल्टीप्लेक्स के लिए और विशेष दर्शक वर्ग के लिए नहीं बनाईं जाती हैं। वह कहते हैं, ‘बॉलीवुड की मूल हिंदी फिल्मों के साथ दिक्कत यह है कि इन फिल्मों की कहानियां  महानगरों से बाहर छोटे शहरों और कस्बों के दर्शकों को उतनी नहीं भा रही हैं क्योंकि इनका कंटेंट शहरी है और इसी वजह से  इन फिल्मों के दर्शकों की संख्या कम है। ऐसे में जाहिर है कमाई के आंकड़े भी कम हो जाएंगे।

जबकि दक्षिण भाषा की हिंदी डबिंग शहरों से बाहर गांवों में भी खूब चलती हैं क्योंकि ये फिल्में मल्टीप्लेक्स के साथ-साथ सिंगल स्क्रीन पर भी रिलीज होती हैं जहां टिकट की कीमत कम होती है।’

रमेश बाला कहते हैं कि केजीएफ, पुष्पा, आरआरआर जैसी फिल्मों ने 200 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई की जिसकी वजह यह है कि सिनेमाघरों में इन फिल्मों को देखने का अनुभव कमाल भरा रहा है। वह कहते हैं कि ये फिल्में महज रोमांटिक कॉमेडी तक सीमित नहीं हैं और जैसे 1980 के दशक में अमिताभ बच्चन की फिल्मों का जलवा दिखा करता था, ठीक उसी तरह से ये पूरे पैकेज वाली फिल्में हैं जिसमें, मनोरंजन गाने, कॉमेडी, सेट, ऐक्शन सब कुछ भव्य है। उनके मुताबिक अच्छे कंटेट की वजह से दक्षिण भारतीय डब फिल्मों की हर वर्ग और हर उम्र के लोगों में अपील है।

दक्षिण भारत की सामाजिक विषमताओं को लेकर जागरूकता बढ़ाने वाली फिल्में भी ओटीटी पर अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं और ये फिल्में देश भर के दर्शकों द्वारा सराही जा रही हैं जिनमें ‘जय भीम’ जैसी फिल्में शामिल हैं।

चेन्नई में रहने वाले दक्षिण भारतीय फिल्मों के कारोबार विशेषज्ञ श्रीधर पिल्लई कहते हैं कि अच्छी सामग्री के साथ ही बड़े सितारों के मेल ने इन फिल्मों की लोकप्रियता बढ़ाई है जिसे हिंदीभाषी दर्शक वर्ग पसंद कर रहे हैं। वह कहते हैं, ‘दक्षिण भारत में भी हिंदी भाषी क्षेत्र हैं जैसे कि बेंगलूरु, हैदराबाद और चेन्नई में उत्तर भारत के लोग काम करते हैं। ये लोग हिंदी फिल्मों के सबसे बड़े प्रशंसक हैं।

इसके अलावा हिंदी फिल्में जो क्षेत्रीय भाषाओं में डब की जाती हैं उनका प्रदर्शन औसत है जब तक कि इनकी सामग्री में क्षेत्रीयता वाला पुट न हो, फिल्में बॉक्स ऑफिस पर कमाल नहीं दिखा पातीं। आखिरी बार हिट होने वाली हिंदी फिल्म ‘दंगल’ थी जिसका तमिल संस्करण रिलीज दक्षिण भारत में रिलीज किया गया था।’ एस एस राजमौलि, सुकुमार जैसे निर्देशकों की फिल्मों और प्रभास, एनटीआर, रामचरण जैसे अदाकारों के प्रशंसक उत्तर भारतीय लोग हैं।

पिल्लई कहते हैं, ‘यह कोई नई बात नहीं है बल्कि करीब 30-35 फिल्मी चैनलों पर डब की हुई तेलुगू और तमिल फिल्में खूब दिखाई जाती रहीं हैं। ये फिल्में पहले ही लोकप्रिय थीं। उत्तर भारत में खासतौर पर महानगरों में मल्टीप्लेक्स का चलन बढ़ा है, पंजाब और उत्तर प्रदेश में सिंगल स्क्रीन कम हो रहा है जिसका टिकट कम हुआ करता था। कोविड के बाद सिनेमाघरों में हिंदी फिल्में लगभग नहीं थीं वैसे में दक्षिण भारत की फिल्मों ने अपनी जगह बनाई है।’

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