Russia China Relations: रूस और चीन मौके के दोस्त, दुश्मनी को वो दास्तां जब बीजिंग पर परमाणु बम गिराने जा रहा था मॉस्को

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मॉस्को: रूस और चीन के बीच पिछले एक दशक से मजबूत हो रही दोस्ती से अमेरिका की नींद उड़ी हुई है। ये दोनों देश एक दुश्मन यानी अमेरिका के खिलाफ लगातार करीब आते जा रहे हैं। यही कारण है कि जब यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस पर पाबंदियां लगी तो उसे सबसे ज्यादा सहायता चीन से ही प्राप्त हुई। इतना ही नहीं, चीन ने तो दुनिया के हर एक मंच पर रूस की आलोचना करने से साफ इनकार किया है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि रूस और चीन शुरू से ही दोस्त रहे हों। इन दोनों देशों के बीच भी सीमा विवाद ने हजारों लोगों की जान ली है। एक समय तो ऐसा भी आया था, जब रूस ने चीन पर परमाणु बम दागने की तैयारी कर ली थी। आज भी चीन का एक बड़ा वर्ग रूस के पूर्वी शहर व्लादिवोस्तोक पर अपना दावा करता है। यह शहर प्रशांत महासागर में रूसी नौसैनिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र है।

कभी चीन पर परमाणु हमला करने वाला था रूस
अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने दावा किया था कि मार्च 1969 के दौरान तनाव इतना बढ़ गया कि रूस ने चीन पर परमाणु हमला करने करने की तैयारी कर ली थी। रूसी राष्ट्रपति कार्यालय से आदेश मिलने के सिर्फ 15 मिनट के अंदर परमाणु मिसाइल लॉन्च कर दी जाती। यह घटना शीत युद्ध की शुरुआत के लगभग एक दशक बाद हुई थी। उस समय अमेरिका की धमकियों से तंग आकर सोवियत संघ के तत्कालीन राष्ट्रपति निकिता ख्रुश्चेव ने फिदेल कास्त्रो के अनुरोध पर अपनी परमाणु मिसाइलों को क्यूबा में तैनात कर दिया था। उस समय तक कम्युनिस्ट शासित देशों में सबसे बड़ा और शक्तिशाली होने के कारण रूस का समर्थन चीन भी करता था।

सोवियत संघ और चीन में दुश्मनी कैसे हुई
सोवियत संघ और चीन कम्युनिस्ट शासित देश होने के कारण पहले तो दोस्त थे। लेकिन, 16 अक्टूबर 1964 को चीन ने पहला परमाणु परीक्षण कर दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया था। इसके बाद चीन ने खुद को परमाणु शक्ति संपन्न देश होने का ऐलान कर दिया। इससे रूस की चिंताएं बढ़ गईं। रूस ने बड़े पैमाने पर चीन से लगी सीमा पर सैनिकों की तैनाती कर दी। इससे दोनों देशों के बीच सैन्य झड़पें भी शुरू हो गईं। परमाणु शक्ति संपन्न होने के नशे में चीनी सैनिक अक्सर रूसी सैनिकों से उलझ जाते थे।

सात महीनों तक चलता रहा रूस-चीन का अघोषित युद्ध
1965 में रूस और चीन के बीच सीमा पर छिटपुट झड़पें शुरू हो गई थी। इनमें दोनों देशों के सैकड़ों सैनिकों की मौतें भी हुईं। 1969 में दोनों देशों के बीच तनाव इतना बढ़ गया था कि मार्च से सितंबर तक दोनों देशों के बीच अघोषित युद्ध लड़ा गया। रूस को उम्मीद थी कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में जारी कलह उसकी मददगार बनेगी। उस समय माओत्से तुंग और लियू शाओकी के बीच चीन में खींचतान मची हुई थी। हालांकिस रूस को इस विवाद का कोई फायदा नहीं मिला।

माओ के आदेश पर चीनी सेना ने रूसी सैनिकों की हत्या की
माओत्से तुंग ने घरेलू उठापठक से जनता का ध्यान हटाने के लिए रूस के साथ तनाव बढ़ाने का फैसला किया। 2 मार्च, 1969 को चीनी सैनिकों को पेइचिंग से सीधा आदेश मिला कि वे जेनबबाओ द्वीप पर तैनात रूस के केजीबी बॉर्डर ट्रूप्स पर हमला करें। यह क्षेत्र रूस के प्रिमोर्स्की क्राय और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) के हेइलोंगजियांग प्रांत के बीच उस्सुरी नदी पर स्थित था। जिसके बाद 300 से ज्यादा चीनी सैनिकों ने रूस के सैनिकों पर हमला कर उन्हें मार डाला। माओत्से तुंग को यह लगता था कि रूस की सेना जवाबी कार्रवाई नहीं करेगी।

जवाब में रूस ने परमाणु हमला करने की तैयारी की थी
हालांकि, रूस में चीन के इस हमले को लेकर व्यापक प्रतिक्रिया हुई। रूस उस समय इतना ज्यादा नाराज हो गया कि उसने अपने स्ट्रैटजिक फोर्सेज को हाईअलर्ट पर रख दिया। उस समय रूस की परमाणु मिसाइलें चीन से 1500 किलोमीटर की दूरी पर तैनात थीं। ये मिसाइलें मॉस्को से आदेश मिलते ही सिर्फ 15 मिनट में चीन में तबाही मचाने को तैयार थीं। लेकिन, रूसी नेतृत्व को डर था कि अगर चीन पर परमाणु हमला किया गया तो इसके व्यापक परिणाम होंगे और अमेरिका को मौका मिल जाएगा। इस कारण मिसाइलों को लॉन्च न करते हुए केजीबी के एलीट बॉर्ड गार्ड्स की टुकड़ी से चीनी सैनिकों पर हमला किया, जिसमें सैकड़ों चीनी सैनिक मारे गए।

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