क्या है एरो 3
एरो 3 को इजरायल एरोस्पेस इंडस्ट्रीज (IAI) ने अमेरिका से मिली आर्थिक मदद के बाद तैयार किया है। अमेरिका ने इसे तैयार करने में मदद की है तो वही यह फैसला कर सकता है कि कितनी संख्या में इसे किस देश को दिया जाएगा। लेकिन सूत्रों की मानें तो अमेरिका ने जर्मनी को बिक्री के लिए इसकी रणनीतिक मंजूरी दे दी है। इजरायल के सीनियर ऑफिसर्स की मानें तो यूरोप के कई देश इस सिस्टम को खरीदना चाहते हैं और बातचीत जारी है। रूस की मिसाइलों से अपनी रक्षा के लिए वो इजरायल के इस सिस्टम पर भरोसा कर रहे हैं।
क्या है बड़ा फर्क

एरो 3 और रूस के एस-400 में सबसे बड़ा फर्क यही है कि, एरो 3 को किसी भी बैलेस्टिक ट्रैजेक्टरी में मौजूद ऑब्जेक्ट्स का पता लगाने के लिए डिजाइन किया गया है। यह सिस्टम एस-400 के अलावा, एस-500, MEAD से पूरी तरह अलग है। इस मिसाइल की ऑपरेशनल रेंज 100 किलोमीटर तक है और यह गाइडेंस सिस्टम पर ऑपरेट होती है। जबकि अगर एस-400 की बात करें तो इसकी रेंज 400 किलोमीटर तक है। जबकि यह मिसाइल करीब 2500 किलोमीटर की ऊंचाई तक उड़ान भर सकती है।
S-400 और एरो-3

ईरान के साथ जारी तनाव के बीच इजरायल ने इस सिस्टम को टेस्ट करने का दावा किया था। इजरायल ने इसे एक अहम घटना करार दिया था। इस मिसाइल को धरती के वातावरण में मौजूद लक्ष्य को टारगेट करके खत्म करने वाली टेक्नोलॉजी के साथा डिजाइन किया गया है। इसमें लगे हाई-रेजोल्यूशन इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसर्स इसे और ताकतवर बनाते हैं। एस-400 को मुख्य तौर पर एयरक्राफ्ट को तबाह करने के मकसद से डिजाइन किया गया था। इसका एंटी-एयरक्राफ्ट सिस्टम एयरक्राफ्ट के साथ ही क्रूज और बैलेस्टिक मिसाइल को भी ध्वस्त कर सकता है। साथ ही यह जमीन पर मौजूद टारगेट्स को भी ध्वस्त कर सकती है। इसकी यही क्वालिटी इसे एरो-3 से बेहतर बनाती है।
रडार सिस्टम बेस्ट!

एरो-3 को इजरायल की सबसे आधुनिक लंबी दूरी का मिसाइल डिफेंस सिस्टम करार दिया गया है। इसका रडार इसे एस-400 से काफी अलग कर देता है। इजरायली रक्षा मंत्रालय के मुताबिक एरो सिस्टम में रडार किसी भी टारगेट का पता लगाकर डाटा फायर मैनेजमेंट सिस्टम को भेजते हैं। इसके बाद डाटा को एनालाइज किया जाता है और फिर इंटरसेप्शन का काम होता है। प्लान पूरा होते ही इसके इंटरसेप्टर टारगेट को निशाना बनाते हैं। इसके बाद मिशन सफलतापूर्वक पूरा हो जाता है।
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