पुतिन संग मिलकर दुनिया में एक नई ताकत खड़ा करना चाहते थे शी जिनपिंग, जानें क्‍यों सता रहा अब बड़ा डर


समरकंद: रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग को 200 से ज्‍यादा दिन हो चुके हैं। इस जंग में रूसी सेना को कई जगहों पर हार का मुंह देखना पड़ा है। इस युद्ध के बीच ही रूसी राष्‍ट्रपति व्‍लादीमिर पुतिन, उज्‍बेकिस्‍तान पहुंचे हैं। पुतिन, शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) के सम्‍मेलन के लिए गए हैं। चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग भी यहां पहुंच चुके हैं। कोविड-19 की वजह से जिनपिंग पूरे दो साल के बाद किसी विदेशी दौरे पर पहुंचे हैं। पुतिन और जिनपिंग दुनिया के शायद ऐसे नेता हैं जिन्‍होंने कई अंत‍रराष्‍ट्रीय नियमों को मानने से इनकार कर दिया है। साथ ही ये दोनों अंतरराष्‍ट्रीय राजनीति में एक नए ग्रुप की शुरुआत चाहते हैं। दोनों ही नेता नाटो के विस्‍तार के विरोध में हैं। मगर यह भी सच है कि यूक्रेन में मिली हार जिनपिंग को परेशान कर रही है।

साझा बयान में कही कई बातें
पुतिन इस साल फरवरी में बीजिंग गए थे और जिनपिंग ने काफी गर्मजोशी के साथ उनका स्‍वागत किया। सात महीने बाद दोनों नेता फिर से मिल रहे हैं। यूक्रेन युद्ध से तीन हफ्ते पहले चीन ने शीत ओलंपिक्‍स की मेजबानी की थी। जब बीजिंग में इनकी मुलाकात हुई तो किसी को भी पता नहीं लग पाया कि किन मुद्दों पर इन्‍होंने चर्चा की है। जिस समय पश्चिमी देशों ने शीत ओलंपिक्‍स का बायकॉट किया, पुतिन ने अपनी मौजूदगी से उसे एक नया रंग दे दिया था।

माना जाने लगा था कि दोनों नेता विश्‍व राजनीति में एक नए युग की शुरुआत कर सकते हैं। 5000 शब्‍दों के एक साझा बयान में दोनों नेताओं ने उस दोस्‍ती का ऐलान किया जिसकी कोई सीमा नहीं थी। इसके साथ ही दोनों ने अमेरिका और उसके साथियों से जुड़ी आपसी शिकायतों का भी जिक्र किया। जो साझा बयान आया उसमें कहा गया, ‘दुनिया एक बड़े बदलाव से गुजर रही है। इसके साथ ही वैश्विक प्रशासन के ढांचे को भी बदलने की जरूरत है।शी जिनपिंग के जूनियर पार्टनर बन रहे पुतिन, भारत के लिए टेंशन वाली है यह खबर
कमजोर रूस, चीन के लिए बेकार

अब जिनपिंग यूक्रेन युद्ध के नतीकों को देखकर परेशान हैं। रूस जीत से कोसो दूर है और इसकी सेनाएं थक चुकी हैं। सेना का मनोबल तो गिर ही गया है साथ ही साथ कई जगहों से सैनिक मोर्चे को छोड़कर भाग रहे हैं। यही बात जिनपिंग को डरा रही है। जिनपिंग के नेतृत्‍व में रूस के करीब होना यानी चीन का युद्ध के नतीजों में सीधा हिस्‍सा होना था। अब एक हारा हुआ रूस पश्चिमी देशों की ताकत तो बन सकता है लेकिन चीन के लिए यह किसी काम का नहीं रहेगा। खासकर ऐसे समय में जब अमेरिका के साथ उसकी प्रतिद्वंदिता बढ़ती जा रही है।

एक कमजोर रूस, अमेरिका के लिए भी बेकार होगा। ऐसे में अमेरिका का पूरा ध्‍यान सिर्फ चीन पर ही होगा। जिनपिंग इस बात को समझते हैं। उन्‍हें पता है कि अगर वह रूस की मदद करने के लिए आगे आएंगे तो चीन पर पश्चिमी देश प्रतिबंध लगा सकते हैं। साथ ही राजन‍यिक मुश्किलों का सामना भी करना पड़ेगा। इसका सीधा असर जिनपिंग की लीडरशिप पर पड़ेगा। अक्‍टूबर में होने वाली 20वीं पाटी कांग्रेस में उनकी नजरें तीसरे कार्यकाल पर हैं और अगर समीकरण गड़बड़ाए तो फिर उनकी कुर्सी भी खतरे में पड़ सकती है।
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ताइवान का सपना टूटा
यूक्रेन युद्ध में नतीजों के बाद पश्चिमी देश और ज्‍यादा ताकतवर हो गए हैं। पुतिन के लिए यूक्रेन पर हमला करने का मतलब था द्वितीय विश्‍व युद्ध के बाद और शीत युद्ध के पहले वाले अंतरराष्‍ट्रीय क्रम से रूस को अलग करना। यूक्रेन पर कब्‍जा नाटो के लिए एक बुरे सपने की तरह होता लेकिन यह यूरोप में रूस के प्रभाव को बढ़ाने वाला और उसकी ताकत को बढ़ाने वाला होता।

रूस की जीत चीन के सामने एक खतरनाक उदाहरण होती और उसे भी लगने लगता कि वह सेना के प्रयोग से ताइवान पर कब्‍जा कर सकता है। चीन की मिलिट्री ने पहले ही इस द्वीप के करीब गतिविधियां बढ़ा दी हैं। पुतिन की सेनाएं अगर रूस में जीत हासिल करतीं तो जिनपिंग का भरोसा और मजबूत हो जाता। लेकिन अब रूस की ही वजह से ताइवान पर कब्‍जे का सपना टूट गया है।



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