याचिकाकर्ता ने एससी से कहा- कर्नाटक एचसी के पास कुरान की व्याख्या करने की विशेषज्ञता नहीं है



डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिजाब प्रतिबंध मामले में याचिकाकर्ताओं ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अदालत के पास इस क्षेत्र में कोई विशेषज्ञता नहीं है। इसलिए उन्हें कुरान की व्याख्या में नहीं जाना चाहिए था कि हिजाब एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है कि नहीं।

न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता युसूफ मुछला ने कहा कि मानवीय गरिमा संवैधानिक रूप से संरक्षित पहलू है और शास्त्र कहते हैं कि लोगों को विनम्रता का पालन करना चाहिए और इस संदर्भ में स्कार्फ पहनना एक व्यक्तिगत मार्कर हो सकता है।

उन्होंने कहा कि विद्वान असहमत हो सकते हैं, लेकिन अगर एक महिला को लगता है कि हिजाब पहनना सही है, तो उसे इसका पालन करना चाहिए। उन्होंने कहा, यह कहना अदालतों का काम नहीं है कि एक का अनुसरण करें और दूसरे का अनुसरण न करें। उन्होंने आगे कहा कि कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हिजाब की अनिवार्यता पर एक निष्कर्ष देने के लिए दूसरे के खिलाफ कुरान की एक व्याख्या का इस्तेमाल किया, जो आपत्तिजनक है।

उन्होंने कहा कि हिजाब एक मौलिक अधिकार है या नहीं, यह यहां लागू होता है और यहां सवाल धार्मिक संप्रदाय का नहीं बल्कि एक व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का है। शीर्ष अदालत कर्नाटक उच्च न्यायालय के 15 मार्च के फैसले के खिलाफ चौथे दिन सुनवाई कर रही थी जिसमें प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों में हिजाब पर प्रतिबंध को बरकरार रखा गया था। शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 14 सितंबर को निर्धारित की है।

 

आईएएनएस

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